बंद मुठ्ठी से भी फिसलती है यादें रेत की तरह
बंद मुठ्ठी से भी फिसलती है यादें रेत की तरह
लोग चले जाते है जिंदगी को जर्रा-जर्रा करते।
आती है यांदे शामों को इन हवाओं की तरह
दिन तो बीत जाते है कुछ खजाने भरते-भरते ।
मोहब्बतों की कसम लिए बैठे है इस तरह
कि जिंदगी बंध गई है फासला तय करते करते।
बंद मुठ्ठी से भी फिसलती है यादें रेत की तरह
लोग चले जाते है जिंदगी को जर्रा-जर्रा करते।
और कब तक जिंदगी जियेंगे हम इस तरह
कोई तो फुर्सत दे दे इन ग़मे तन्हाइयों से।
अब के तू मिला हमसे अगर इस तरह
ऐसे लिपटे तुझसे की तुझमे फ़ना हो जाएँ।
बंद मुठ्ठी से भी फिसलती है यादें रेत की तरह
लोग चले जाते है जिंदगी को जर्रा-जर्रा करते।
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धन्यवाद
हिमांशु उपाध्याय
5 Comments
wah
ReplyDeleteWaha pe रातों की तरह होगा क्या?
ReplyDeletewahan par रेत hoga
Deletethanks
Wah par kuch galti ki hai aap ne
ReplyDeletemaine galti ko sudhar liya hai
ReplyDeletethanks for correct me
Thanks for Comment.