डगर
पकड़ी है यह कौन सी डगर, कैसा चुना है यह रास्ता
खुद को भी भुला और खुदा को भी, तोडा तूने किनसे यह फ़ासला
तेरी तो नहीं यह मंजिले, तेरे तो नहीं यह संस्कार
कैसा जहर खाया है तूने, जो फैला तुझमे अहंकार
पकड़ी है यह कौन सी डगर, कैसा चुना है यह रास्ता
खुद को भी भुला और खुदा को भी, तोडा तूने किनसे यह फ़ासला
फेंक दे ऐ बन्दे यह जहर, हुआ बहुत थोड़ा रुक थोड़ा ठहर
हो रही है समाज की गरिमा भंग, क्यों तू जा रहा इस डगर
पकड़ी है यह कौन सी डगर, कैसा चुना है यह रास्ता
खुद को भी भुला और खुदा को भी, तोडा तूने किनसे यह फ़ासला
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हिमांशु उपाध्याय
4 Comments
शानदार
ReplyDeleteBht badhiya
ReplyDeleteSuper thaught sir
ReplyDeleteNice thaught sir ji
ReplyDeleteThanks for Comment.